Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

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Thursday, August 12, 2010

जब तुम घर नहीं होती

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मेरा मन भी बैचैन रहता है अस्थिर भटकता हूँ जगत में मन के सुने वन में अजीब से ख्यालों से जूझता हुवा इन्तेजार करता हु प्रिये! के कब तुम्हे लौटा...
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