Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

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Tuesday, April 19, 2011

संधि पर संधि है "संधियुग"

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हम चले जा रहे है  अंधी सुरंग में  हाथ थामे  लड़ते  गिरते  कुचलते  अपनो को  परायों को  जिनके पीछे वो  देख नहीं सकते  अपनी नाक  और  निजी स...
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