Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

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Saturday, December 31, 2011

विदा हो कोलाहल के बरस

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मर चुके चौराहे पर  ज़िंदा होती उम्मीद  आशा के निनाद  और जन कलरव के बरस  तुम  उम्मीद दे गए  तरसती आँखों को  सपना  बरसती बूंदों का सावन  वाद...
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