Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

Saturday, February 13, 2010

एक चुप और ...

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एक चुप और ... शोषण पर साहित्य देशहित में रात्रिभोज और गांधीवाद समाजवाद की शोक सभाओ में मंदिरा ... लम्पट युग के स्वच्छंद व्यभिचार को न्यायसंग...

क्षण

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सोचा था आज जरुर लिखूंगा करूंगा कुछ !!! सार्थक पर तय नहीं कर पाया हूँ अब तक कि कैसे निरर्थक निर्भिप्राय ही नष्ट कर सकते है हम क्षण को क्या ये...

मत भूल जाना

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यू संभावनाओं में कल्पना से सृजित समस्याओं के समाधान अब चलन में हैं बस किसी तरह इसे उस गरीब को समझा सके तो सरकार फिर अपनी बनेगी वो मुरख इतनी ...

यादो में सही |

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कोई नहीं छूटा सब वही है पर यादों में चलो ऐसे ही सही समय और नियति के दुरूह चक्र में नित्य बदलता जीवन इसमे वो रस कहाँ जो अतीत की जुगाली में है...

लय/ छंद में

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अम्बर में धरा में जीवन में धरा क्या है ? सोचा, कहा, सुना ,देखा सही , किया क्या है ? वह भूल से भूलकर भी भूलता नहीं फिर भी याद करता है , पर या...
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कृष्ण !

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किसके लिए लिखू , क्या लिखू क्यों भला , इतना सोचकर , तय किया , कृष्ण के लिए लिखू , क्यों ? कृष्ण ही क्यों ? क्योकि वह कृष्ण है | उतना ही काफी...
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स्वयं से

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तुम संकल्प हो , श्रष्टा हो स्वयं , स्वयं ही खोजते हो स्वयं को स्वयं में , क्या हो प्रभो ! जगन्नाथ हो जगदीश्वर हो दाता तुम्ही हो स्वयं से माँ...
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