Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

Tuesday, April 27, 2010

आम का मौसम है आम चूसिये

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आम का मौसम है आम चूसिये , दो चार लेकर जेब ठुसिये क्या पता , फिर आम आम ना रहे क्योंकि एक चुनाव काफी है आम के ख़ास होने को ये डिटर्जेंट काफी ह...
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Wednesday, April 21, 2010

अपने जन्मदिन पर खुद को ...

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अपने जन्मदिन पर खुद को ... आज उदास नहीं होउंगा नाही निराश होने दूंगा स्वयं को थोड़ा मुश्किल है जब सब और से घेरा हो अंधेरों ने अगर ये रात है ...
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Tuesday, April 20, 2010

गुलाम

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फिर बनी उनकी सरकार सब नौकर हो गए सता पर काबिज फिर संतरी और जोकर हो गए ! वंशवाद और सामंती शासन की स्मृती मिटती नहीं गुलाम मानस से परिवर्तन से...
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आक्रोश

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निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी, जड़ है , कलियुगी अव्यवस्थाओं की त्वरित प्रतिक्रियाएँ , अनियंत्रित, अनाधिकृत, अपरिपक्व , अपरिष्कृत , आक्रोश रोग...

इन्तेजाम

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ढूँढना मुझे , जब खो जाऊ मैं और मेरी स्म्रतियों के स्मारक बनाना पर अभी तो कोई बात नहीं मैं जिंदा भी हूँ और किसी काम का भी नहीं क्योंकि मेरे न...

एक छोटी सी कविता

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एक छोटी सी कविता , मेरी गोद में आ बैठी , और बड़े प्यार से , मेरे कानों में , कुछ बोल गयी | उसका मतलब , तो ना समझ पाया , अब तक , पर , उसका वो...

फिर कोई नयी बात

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लो फिर एक "डेडलाइन", एक और फिर कतार में , हर खबर खड़ी है , जैसे , किसी इन्तेजार में | कि कई और भी बातें , कई और भी चेहरे, सुने हुवे...
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