Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

Wednesday, April 27, 2011

करवट समय की

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समय  ऊंट सा  चला जा रहा है  संवेदना रहित  निर्जन  अमानुष  शुष्क  विस्तार में  रस की  चंद बूंदों को  जहा  फंदे बनाकर  रिझाया जा रहा है ... ...
Tuesday, April 19, 2011

संधि पर संधि है "संधियुग"

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हम चले जा रहे है  अंधी सुरंग में  हाथ थामे  लड़ते  गिरते  कुचलते  अपनो को  परायों को  जिनके पीछे वो  देख नहीं सकते  अपनी नाक  और  निजी स...
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Monday, April 18, 2011

भारतीयता मौलिक ही रहेगी

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या यू कहे  कि मौलिकता ही  भारतीयता है  तो  ज्यादा सही होगा  ज्यादा करीब होगा  उस सच के  जो  छुप गया है  दब गया है  बाजारू सोच  और  हरदम ...
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Sunday, April 17, 2011

क्रान्ति जब होगी

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तुम टीवी पर  ख़बरों में  खुद को पाओगे  खून से सना  नंगी होंगी  भूख  हवस  और  उसके बीच  बेबस  तुम  क्...
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Saturday, April 16, 2011

आत्ममुग्ध राष्ट्र में संविधान की ताकत

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इस संविधान को  सैकड़ो बार  आसानी से  बदला गया है  इसके  अनुच्छेदों में  छेद कर  घर बना चुके है  चूहें  कंडीकाएं अब  बस  काडी भर करती है  ...
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Thursday, April 14, 2011

"मनमोहन" तू कोई इत्तेफाक लगता है रे

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इत्तेफाक नहीं लगते एक मुझे उसके आंसू और बेबसी | उसका दर्द , मुफलिसी  बस तुम्हे इत्तेफाक लगता है || तमाम दुश्वारियों का तुझसे नाता बस इत्ते...
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Tuesday, April 12, 2011

राष्ट्र देवो भव:

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ये ध्वज  ये भूमि  सब अपने  इस राष्ट्र देव में  समाहित है  जाती से  वर्णों से  ऊपर  कहीं  सब धर्मों को  समेटे  एक आँगन में  धूप छाव सा  शह...
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