Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

Thursday, November 26, 2015

दादी के अचार सा खट्टा-मीठा तीखा-कडुवा : "संविधान"

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जाने कैसे  जाने क्या क्या  मसाले डालकर  आम का  पुराना अचार  जो  डाला करती थी  दादीयां / नानीयां उसका  जायका  ज्याद...
Thursday, February 9, 2012

देस

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जहां मेरे नाम भी  एक जमीन हो  जिस पर  चला सकूँ हल  बो सकूँ  सपनों के बीज  जहां  सावन  तकादे ना कराये  ना ही  बिन...
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Sunday, February 5, 2012

मैं

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खोजता हूँ स्वयं को  स्वयं ही में  खो गया हूँ  मैं ! कुछ और था  कुछ देर पहले  अब  कोई और  हो गया हूँ  मैं !
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Wednesday, February 1, 2012

धीरे धीरे

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धीरे धीरे  सब बदलता है  वक्त भी  समाज भी  व्यक्ति भी  साधन  और  साध्य भी  मगर  सोच ... नहीं ! कुछ तो चाहिए  ...
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Thursday, January 19, 2012

मिटटी में खेलता बचपन

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खो ना जाए मिटटी ही में  उसे पनपने दोगे ना ! अपने भागते जीवन में  उसे भी जगह दोगे ना ! कुचल तो नहीं दोगे ? अंधी दौड़ मे...
Saturday, January 14, 2012

सरकारी स्कूल

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राम रहीम  सरजू बिरजू  पोलियो वाली दुलारी  सब  कट्ठे ही  रास्ता देखते है  टीचर दीदी का  जिसके सम्मान से  गाव का लाला...
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Thursday, January 12, 2012

कुछ ख़त अजनबी पते पर अपनो के नाम ...

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पहला ख़त  मेरे गाव की मिटटी को  जिससे ही पाया  प्यार दुलार  जहा अंकित हुवे  स्वप्न  आज भी  अमिट है  हे मातृभूमि ! सदा वंदनीया ! तुझे प्रणा...
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