फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
बाहर ..
अंधेरों में
तूफ़ान चल रहा था कोई |
....
भीतर ..
दीये के
सूरज पल रहे थे कई ||
सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
आदरणीया !२०११ की प्रतिक्रिया के उत्तर में , क्षमा प्रार्थना सहितदेर से सही पर सादर आभार, अभिनन्दन !जय श्री कृष्ण जी !
शानदारकुछ पंक्तियों में सागर भर दिएसादर
आदरणीय दिग्विजय जी !सादर आभार !जय श्री कृष्ण जी !
सुन्दर अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीया !
Delete२०११ की प्रतिक्रिया के उत्तर में , क्षमा प्रार्थना सहित
देर से सही पर सादर आभार, अभिनन्दन !
जय श्री कृष्ण जी !
शानदार
ReplyDeleteकुछ पंक्तियों में सागर भर दिए
सादर
आदरणीय दिग्विजय जी !
Deleteसादर आभार !
जय श्री कृष्ण जी !