तप , त्याग , क्षमा की मूर्ति
लक्ष्मी ,काली ,कल्याणी !
सब जग रची महू आप विराजी ,
तू ही रमा ,शारदा ,वेदवाणी !
ब्रह्मा रची फिर वेद रचे चारि ,
रची
सृष्टि त्रिदेव शरण मानी !
शिव चौको कियो सती सु नारी ,
तू ही जगजननी , उमा , भवानी !
संशय दुःख ताप हरति जग का
आप हवन हो शुभ देती महादानी !
तुम्हरे चरण भेंट करू अल्पज्ञ मति
माँ ! तुम अथाह ज्ञानराशि मै अज्ञानी ||
जय जय माँ महागौरी ! माँ जगदम्बा !!
जय जय माँ!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-10-2022) को "अभी भी जिन्दा है रावण" (चर्चा-अंक-4572) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'