Thursday, December 1, 2022

बाबू ! सब्बै मीडिआ बिकाऊ ना बा ...

 

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ससुर  इहा हर खबर बिकात बा  ,
अउ जो बिकात बा 
सोइ ना छपात बा !
कहत हई के मीडिया बिकात बा ?

अरे भाई हर खबर
अब जरुरी तो नहीं होती ,
खबर छुपाना....
खबरे बनाना ...
सरकारी काम है देखो ,
ना ! मजबूरी कतई नहीं होती !!

अरे भाई साहब !
भाई से ऊपर भी कई ,
साहब पे साहेब
फिर सबसे बड़े जो
साहेब है ना...
हां ! हां !! जी !  जी !! वही -वही
ठीक समझे आप..
तो साहब जो लिख दिए
समझो अध्यादेश हो गया
उनका पार्टी-कार्यालय
और आँगन समझो देश हो गया

तो हम तो देश ही की
खबर बजाते है ,
जो जूठन सरकार
गिरा देते है
बस वही खाते है
लोगों का क्या है
यु ही बतियाते है

आप तो देखो
कितने समझदार है ,
क्यों इनकी बातों में आते है
आइये आपकी
कमाई कहा गवाना ..... मतलब
कहा लगाना है
हम बताते है

आपका अपना "मीडिया" , जो बिकाऊ तो कतई नहीं है

10 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनिता जी एवं समस्त चर्चामंच परिवार को सतत स्नेह मार्गदर्शन देने के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार !
      जय श्री कृष्ण जी!

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  2. जूठन सरकार
    गिरा देते है
    बस वही खाते है
    लोगों का क्या है
    यु ही बतियाते है.
    तीखा कटाक्ष ❗️
    कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और. बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

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  3. सामायिक परिस्थितियों पर सीधा प्रहार करती
    सटीक व्यंग्य रचना।
    सुंदर सृजन।

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  4. बहुत ही सुंदर

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