ससुर  इहा हर खबर बिकात बा  ,
अउ जो बिकात बा  
सोइ ना छपात बा !
कहत हई के मीडिया बिकात बा ?
अरे भाई हर खबर 
अब जरुरी तो नहीं होती ,
खबर छुपाना.... 
खबरे बनाना ... 
सरकारी काम है देखो ,
ना ! मजबूरी कतई नहीं होती !!
अरे भाई साहब !
भाई से ऊपर भी कई ,
साहब पे साहेब 
फिर सबसे बड़े जो 
साहेब है ना... 
हां ! हां !! जी !  जी !! वही -वही 
ठीक समझे आप.. 
तो साहब जो लिख दिए 
समझो अध्यादेश हो गया 
उनका पार्टी-कार्यालय 
और आँगन समझो देश हो गया 
तो हम तो देश ही की 
खबर बजाते है ,
जो जूठन सरकार 
गिरा देते है 
बस वही खाते है 
लोगों का क्या है 
यु ही बतियाते है 
आप तो देखो 
कितने समझदार है ,
क्यों इनकी बातों में आते है 
आइये आपकी 
कमाई कहा गवाना ..... मतलब 
कहा लगाना है 
हम बताते है 
आपका अपना "मीडिया" , जो बिकाऊ तो कतई नहीं है 
 
:)
ReplyDeleteजय जय श्री कृष्ण !
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनिता जी एवं समस्त चर्चामंच परिवार को सतत स्नेह मार्गदर्शन देने के लिए हृदय से बहुत बहुत आभार !
Deleteजय श्री कृष्ण जी!
जूठन सरकार
ReplyDeleteगिरा देते है
बस वही खाते है
लोगों का क्या है
यु ही बतियाते है.
तीखा कटाक्ष ❗️
कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और. बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ
जय श्री कृष्ण जी !
Deleteसामायिक परिस्थितियों पर सीधा प्रहार करती
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य रचना।
सुंदर सृजन।
जय श्री कृष्ण जी !
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण जी !
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