Saturday, May 27, 2023

तकनीक की बलि चढ़ता बचपन



कितने उदास है
बच्चे आजकल
यु ही नहीं
चिपके रहते वो
फोन से , हर पल 

एक पेड़
एक चिड़िया भी तो
दोस्त नहीं उनकी
थक गए है
भाई बहन भी अब
झगड़ झगड़

तमाम साधनों से
झरती मनोरंजन
की बाढ़ में भी
बोरियत
ढूंढ लाते है वो

इस उम्र में ही
अनुभवहीन
कल्पनाओं में
थका रहे खुद को

संघर्ष नहीं
मनोरंजन की
ठंडी भट्टी में
गला रहे खुद को

माँ बाप
लाचार से
अँधियो में
अंधे प्रचार की
दीपों को
जलाए रखने की 
उम्मीद
और
प्रार्थना भर
कर सकते है

तमाम तिलिस्म है
कैद है बचपन
दिन में सौ बार
फना हो कर
फिर मर सकते है

क्या बचेंगी 
संवेदनाएं भी
भावी पीढ़ी पे
भरोसा ये कर सकते है ?


4 comments:

  1. आज के समय का कटु सत्य!
    किंतु भरोसा करना ही होगा,
    अब भी घरों में संस्कार दिये जाते हैं,
    लाख आंधियाँ चलें आधुनिकता की,
    दीये आस्था के फिर भी जले जाते हैं

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया ! प्रणाम !
      बहुत आभार एवं अभिनन्दन

      Delete
  2. तमाम साधनों से
    झरती मनोरंजन
    की बाढ़ में भी
    बोरियत
    ढूंढ लाते है वो

    इस उम्र में ही
    अनुभवहीन
    कल्पनाओं में
    थका रहे खुद को
    बहुत सटीक...
    वाक ई स्थिति चिंताजनक है...ऐसे कैसे क बीत रहा आज के बच्चों का बचपन।
    बहुत सुंदर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया ! प्रणाम !
      बहुत आभार एवं अभिनन्दन

      Delete