Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."

फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"

Friday, March 19, 2021

उफ़्फ़ ये बेहया बेलग़ाम आँकड़े !

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  एक तरफ बैठे थे अफसरां लेकर के बेरोज़गारी अपराध और बेपटरी अर्थनीति के भयावह आँकडे ! दूजी और भी वैसे ही मातहत डरा रहे थे .. दिखा-दिखा कर महाम...
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Sunday, February 28, 2021

हर हर !! महाशिव हरे हरे !!!

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   नहीं जानता मैं समय की सीमाएँ समय जानता है सबकुछ तय करता बदलता सबकी / सारी / सांझी परिसीमाएँ बदल बदल बहुत बदल सको तो भी बस बदल सकोगे कालां...
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Thursday, February 11, 2021

बड़े वो है ..... मुहलगे !

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  हमारे वो ... वैसे तो कुच्छ नहीं हमारे सामने | कुच्छ कहती नही हूँ उनको इसलिए कि वो है नेता जी के बड़े ही मुहलगे || आग मूत रक्खी है मोहल्ले ...
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Wednesday, August 26, 2020

ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत

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    ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत ... सड़क जो काटती थी उसे हर तरह हर तरफ दिन रात गलती पहाड़ ही की रही होगी जो ढह गया एक दिन उस पर ... चुप-चा...
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Thursday, November 26, 2015

दादी के अचार सा खट्टा-मीठा तीखा-कडुवा : "संविधान"

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जाने कैसे  जाने क्या क्या  मसाले डालकर  आम का  पुराना अचार  जो  डाला करती थी  दादीयां / नानीयां उसका  जायका  ज्याद...
Thursday, February 9, 2012

देस

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जहां मेरे नाम भी  एक जमीन हो  जिस पर  चला सकूँ हल  बो सकूँ  सपनों के बीज  जहां  सावन  तकादे ना कराये  ना ही  बिन...
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Sunday, February 5, 2012

मैं

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खोजता हूँ स्वयं को  स्वयं ही में  खो गया हूँ  मैं ! कुछ और था  कुछ देर पहले  अब  कोई और  हो गया हूँ  मैं !
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Tarun / तरुण / தருண்
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