Friday, November 26, 2010

तंज

२६/११ या कुछ और भी
इस तरह
उस तरह
एक दिन
हम केलेंडर के
हर पन्ने को
भर देंगे
अपने नपुंशक
मौन धारण
और
मौत पर
जश्न जैसे
जलसों से
जहा
फ़िल्मी सितारे
कवी , गायक
और
नेता
अपना मंच
ढूंढ़कर
बनाकर
बेचेंगे
शर्म और इंसानियत
और
माध्यम रूपी
भेडिये
लगायेंगे सेंध
भोले
भेडचाल के मारे
जनमानस के
थक चुके
टूट चुके
विश्वास में
बेच ही जायेंगे
जीने की एक वजह
और
अर्थी का
कुछ सामान
पता नहीं
रोज
इंसान मरता है
या
शर्म !