Thursday, September 22, 2022

शिकायतें मगरूर है मगर ...

Pahimakas - Being a giver taught me that it's okay to feel bad for others  and not help them in a way they needed. It's okay to look stern, arrogant,  and ungrateful 
 
पूछो ना क्या याद रहा , क्या मैंने भुला दिया |
उसका फिर याद आना , फिर मैंने भुला दिया ||

पलट पलट के किताबे-अतीत थक गया था मै |
जागता रहा रात भर मगर तुझको सुला दिया ||

आहिस्ते से बात कर , सुन धड़क रहा है दिल |
अभी चुप किया था मैंने , फिर तूने रुला दिया ||

शिकन ये चादरों पर, ये शिकन तन्हाइयों की है |
लम्हा है कटता नहीं यहाँ, तूने किस्सा बना दिया ||

इस हाल यार मुलाक़ात तो फिलहाल क्या होगी |
मसरूफ़े तंगहाल को मग़रूर तुम्ही ने बना दिया || 
 
कुछ लिखू मै ये ख्वाहिश तो कई दिनों से थी मगर |
मेरी मेज को जरूरतों ने जाने कब दफ्तर बना दिया ||

खैर शिकायतों की ये किश्त तो बस आखरी है दोस्त |
सबबे-बेसब को सबब जीने का नज़रिया दिला दिया ||


 


मच्छर बड़ा कि नेता ?


 

दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून

एक
शहीद 
होता ताली पर
दूजा बस 
कटा नाख़ून

साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय

सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय

एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय

एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय

एक
काटे
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय

काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर 
शर्म ही से न मर जाय !

Friday, September 16, 2022

वो रोज अनशन करता है



वो रोज अनशन करता है  

फुटपाथ पर 
झोपड़ों में 
जंगलों 
दुरान्चलों 
और 
तुम्हारी गली में भी 

भूख 
और 
गरीबी के खिलाफ 
जो 
रची 
थोपी 
गयी है 
पीढ़ी दर पीढ़ी  
उनके 
और 
उनकी 
संतानों द्वारा 
इन पर 
इनके 
बाप 
दादाओं पर 
वो 
तभी से 
अनशन पर है 

उसकी 
मंशा है 
कि 

कोई भी 
कभी भी 
तुड़वा सकता है 
उसका
अनिश्चितकालीन 
आमरण अनशन 
देकर 
एक टुकड़ा 
बासी रोटी 
सड़ा अनाज 
या 
जूठन ही 
मानवता के 
उत्सवी जनाजों की 

उड़ती उड़ती 
अफवाह है 
अब 
इसका भी 
बड़ा बाजार है 
वो मायूस तो है ही 
मरने को है 
ये जानकर कि 
भूख 
अब डर नहीं 
साधन बन गयी है 
डराने का 

वो जो 
नगर चौक पे 
गद्दों पर पसरा 
भीड़ से घिरा 
अनशना रहा है 
कुंवर है 
ऊँचे घराने का  |

अनशन 
अब सीढ़ी है 
स्वार्थ की 
इससे निबटना 
जानती है 
सामंती सत्ता 
वो डरती नहीं 
आकलन करती है 
भीड़ में 
विरोधी वोटों का 

उसका 
आमरण अनशन
हमेशा 
सफल रहा है 
मरण बन कर 
उसके साथ ही  
मिट जायेगी 
भूख 
गरीबी 
और 
नाकामियाँ 
नाकारा 
सरकार की |