फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
Friday, March 31, 2023
लिखने का नैतिक दुस्साहस !
करते है
कुछ
मेरे जैसे लोग
कुछ
तुम में से भी होंगे
बिना जाने
कि
कैसे एक एक शब्द
एक एक वाक्य
तुम्हारा पर्याय बन
जुट जाता है
उस रचना में
जो शायद
मेरा
या
तुम्हारा
मंतव्य ही ना था
सोचा ना था
इतनी दूर निकल जायेंगे
वो शब्द
और
इतना
विराट होगा
उनके अर्थों (अनर्थों !)
का फैलाव
कि
फिर समेट ही ना सकेगा
कोई कवि
कभी
उस भटकाव को
फिर
चाहे
कितने सुन्दर
अलंकारों
और
सधे छंदों में
रचते रहों
श्रष्टि पर्यंत
वेदों पर उपवेद
और
महाग्रंथ
या उनपर भाष्य
छद्म मनुष्यता
अश्प्रश्य ही रहेगी
चाहे पहन ले
कितने ही
शब्दाडम्बरों के
चमचमाते
चौधियाते
मुक्ता मणि |
Wednesday, March 29, 2023
जगदम्बा सिद्धिदात्री ..... तू देती है केवल देती ही है माँ !
माँ महागौरी तेरी महिमा अपरम्पार
Wednesday, March 8, 2023
माँ तुम कैसी हो ?
माँ तुम कैसी हो ?
आज
पूछना चाहा
मगर
फोन नहीं लगा |
अगर
लग भी जाता
तो
ज्यादा बात नहीं होती|
वही
हमेशा की तरह
कैसे हो बेटा
हम सब ठीक है ,
अपना ख्याल रखना,
आदि
दोहराए जाते |
माँ मैं तुमसे कहना चाहता हू, कई बाते मगर तुम उसे टाल दोगी | जानता हू पूरा बचपन और जवानी गुजार दी मैंने , तुम्हारे आँचल की कवचनुमा छाव में , अब किसी और से उस गोद उस स्नेह स्पर्श आँचल और काँधे की उम्मीद सपना भर लगती है | फिर भी
बहुत घनी
है,
अब भी
उन यादों की छाव ,
गुजारने को
सौ जीवन ,
हो चाहे
नरक सामान ...
माँ तुम क्या हो ये सिर्फ मैं जानता हू | तुम भी शायद ये ना जान पाओगी , कितना अनोखा है ना माँ-बेटे का ये रिश्ता ! आज जब अपने बेटे को , उसकी माँ की गोद में मचलते, अनुनय करते , दुलारे जाते देखता हू तो अनायास उस स्राष्टिकर्ता पर उसके अजब करतब पर
बस
हैरान होकर
रह जाता हू
अपने बेटू की
प्यारी "मम्मी" को
मै भी
कभी कभी .....
"माँ"
कह जाता हू !
~ महिला दिवस की शुभकामनाए ~