जाने कैसे
जाने क्या क्या
मसाले डालकर
आम का
पुराना अचार
जो
डाला करती थी
दादीयां / नानीयां
उसका
जायका
ज्यादा मायने रखता था
या
वजह बनाने की ....
इस पर
बहस हो
या
सैकड़ो / हजारों
तरकीबों पर ...
या
इस पर कि
सब्जी - फलों तक ही
महदूद हो
हद-ऐ-अचार ...
या कि
गोश्त भी / हड्डियां भी हो !
इस फेहरिश्त में ,
बकौल सेक्युलर
खरामा खरामा
हाजमा दुरुस्त करने को !
मर्दानगी बढ़ाने को ....!!
या महज
खालिस जायके
की खातिर ??
अचार को
आम की पहुंच
और समझ से
कोसो दूर ...
इतना
कसैला / बेस्वाद
और
लगभग बेवजह
बनाने के
आधुनिकतम मनसूबे देखकर ...
क्या
आपकी आँखों में
आंसू नहीं आते ?
क्या
आपका जी भी
उल्टियाँ करने को
नहीं करता ...??
उल्टियाँ करता मुल्क
उम्मीद से तो
नहीं लगता...