Wednesday, August 26, 2020

ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत

 
ये राहें तरक्की औ वो रोड़े क़यामत ...

सड़क
जो काटती थी
उसे
हर तरह
हर तरफ
दिन रात

गलती
पहाड़ ही की
रही होगी
जो ढह गया
एक दिन
उस पर ...
चुप-चाप | 
 
 
#landslide 
 

 

Thursday, November 26, 2015

दादी के अचार सा खट्टा-मीठा तीखा-कडुवा : "संविधान"



जाने कैसे 
जाने क्या क्या 
मसाले डालकर 
आम का 
पुराना अचार 
जो 
डाला करती थी 
दादीयां / नानीयां

उसका 
जायका 
ज्यादा मायने रखता था 
या 
वजह बनाने की ....
 
इस पर 
बहस हो 
या 
सैकड़ो / हजारों 
तरकीबों पर ...
 
या 
इस पर कि  
सब्जी - फलों तक ही 
महदूद हो 
हद-ऐ-अचार  ...
 
या कि 
गोश्त भी / हड्डियां भी हो !
इस फेहरिश्त में ,
बकौल सेक्युलर 
खरामा खरामा 
हाजमा दुरुस्त करने को !
मर्दानगी बढ़ाने को ....!!
 
या महज 
खालिस जायके 
की खातिर ??
अचार को 
आम की पहुंच 
और समझ से 
कोसो दूर ...
 
इतना 
कसैला / बेस्वाद 
और 
लगभग बेवजह 
बनाने के 
आधुनिकतम मनसूबे देखकर ...

क्या 
आपकी आँखों में 
आंसू नहीं आते ?
 
क्या 
आपका जी भी 
उल्टियाँ करने को 
नहीं करता ...??
 
उल्टियाँ करता मुल्क 
उम्मीद से तो 
नहीं लगता...   

Thursday, February 9, 2012

देस


जहां
मेरे नाम भी 
एक जमीन हो 
जिस पर 
चला सकूँ हल 
बो सकूँ 
सपनों के बीज 
जहां 
सावन 
तकादे ना कराये 
ना ही 
बिन  बुलाये 
बाढ़ / सूखा 
थोप दिए जाए 
जिसके बहाने 
सरकारी अमरबेल 
फिर 
पनप जाए 

मैं तो 
परदेस में 
ईटें बनाता हूँ 
सुना है 
मेरी 
गिरवी 
खपरैल पर 
नेता मुरदार 
वोट 
माँगने आये रहे 

ना 
हम नाही गए 
बटन दबाने 
और 
ऊँगली पर निसान 
अरे 
ये तो ईटा से 
कुचल गयी 
मुद्दा 
हम तो 
कब से 
"देस" गए ही नाही !


Sunday, February 5, 2012

मैं



खोजता हूँ
स्वयं को 
स्वयं ही में 
खो गया हूँ 
मैं !
कुछ और था 
कुछ देर पहले 
अब 
कोई और 
हो गया हूँ 
मैं !

Wednesday, February 1, 2012

धीरे धीरे


धीरे धीरे 
सब बदलता है 
वक्त भी 
समाज भी 
व्यक्ति भी 
साधन 
और 
साध्य भी 
मगर 
सोच ...
नहीं !
कुछ तो चाहिए 
वर्ना 
जिन्दगी 
मायनेदार ना हो जाए !


Thursday, January 19, 2012

मिटटी में खेलता बचपन



खो ना जाए मिटटी ही में 
उसे पनपने दोगे ना !
अपने भागते जीवन में 
उसे भी जगह दोगे ना !
कुचल तो नहीं दोगे ?
अंधी दौड़ में 
कोई बचपन 
गति 
अन्धविकास की
थाम कर 
कुछ क्षण 
उसे राह दोगे ना !
वो क्या देगा ?
ये ना समझ पाओगे 
अभी 
तो भी 
झंझावत में समय के 
किनारे ढूंढ़ती 
मानवी जीवन रेखा के 
संबल के खातिर ही 
अकिंचन बात मेरी 
मान लोगे ना !


Saturday, January 14, 2012

सरकारी स्कूल


राम रहीम 
सरजू बिरजू 
पोलियो वाली दुलारी 
सब 
कट्ठे ही 
रास्ता देखते है 
टीचर दीदी का 
जिसके सम्मान से 
गाव का लाला 
और सरपंच तक 
ईर्ष्या करते है
यही कही 
पढ़ाया जाता है 
पाठ 
समाजवाद का 
जिसे 
कागजो के शेर 
और कुर्सियों के कारीगर 
बदलने की कोशिश 
करते रहते है 
और हंसती रहती है 
उनकी टीचर दीदी 
नहीं टोकती उन्हें 
उनकी ऐसी 
नादानी पर !