Thursday, April 13, 2023

सरस्वती के भक्तों के लिए वेद वाणी के ये अद्भुत सूत्र


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||1||

ॐ  विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।

पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् ॥ १ ॥ 


विद्या से विनय प्राप्त होती है : कितना सुन्दर सूत्र है , आज विद्यार्थियों को अनेक परीक्षाओं और साक्षात्कार से गुजरना पड़ता है परन्तु फिर भी वे किसी संतोषप्रद पद को नहीं पा कर क्लेश ही पाते है । कितना ही अच्छा हो कि  इस  विनय की परीक्षा को लक्ष्य कर और इसी को आधार बना कर यदि लोकसेवकों और विद्वज्ञ पदो को सृजित किया जाऐ । विनय की तैयारी , अभ्यास , प्रशिक्षण और उपलब्धि ही शिक्षा का मूल हो फिर कोई भी कार्य हम करे वही सृजन और आनंद का साधन बन जाएगा , क्लेश मुक्त निर्मल आनंद यही तो जीवन की अभीष्ट प्रायोजना है । बाकी शेष चारो पुरुषार्थों की उपलब्धि फिर सहज ही हो जायेगी । ॐ 


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||2||

यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते । तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु ॥२॥

जिस प्रकृति की मेधा (प्रचलित अर्थ है बुद्धि ) की उपासना अथवा सत्कार हमारे पूर्वज (देशकाल अनुसार / स्मृति अनुसार ) और देवता (हमारे भीतर की आवाज जो तत्व निर्णय करने का अंतिम मानदंड है ) करते है  , कृपा कर उसी उत्तम मेधा से हमें संयुक्त / हम को उपलब्ध कीजिये । 
परम्परा के साक्ष्य और उसकी अनुपलब्धता अथवा उससे भी उत्तम चयन अपनी समझ के आधार पर जिस समझ और प्रकृति / संस्कृति / विद्या /ज्ञान / धर्म / आस्था  को हम यथेष्ठ और उत्तम मानते है उसी के अनुसार अपनी मति के परिमार्जन / सृजन हेतु माँ सरस्वती और श्री गुरु चरण में निवेदन करे । 


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||3||

ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥ 

कौन सी विद्या और किस हेतु विद्या ? इसका अंतिम उत्तर यहाँ है जो "सत्य" के पथ पर अग्रसर रखे , "प्रकाश" अर्थात यथार्थ पर केंद्रित रखे और शाश्वत "तत्व" की उपलब्धि करावे जिसे श्री कृष्ण "आत्मा" कहते है और जिसका नाश कभी नहीं होता । 

यह उपरोक्त तो व्यक्तिगत उपलब्धि और स्वार्थपरक चर्चा लगती है परन्तु जीव और जगत से भी पर समस्त सृष्टि के लिए भी कहा गया है 


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||4||

ॐ सह नाववतु | सह नौ भुनक्तु | सहवीर्यं करवावहै | तेजस्विनावधीतमस्तु | मा विद्विषावहै ||
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||

हम साथ साथ आये , साथ ही पुष्ट / तुष्ट हो और साथ मिलकर श्रेष्ठ पुरुषार्थ करते हुवे उत्तम तेज़ को उपलब्ध हो हम में कोई द्वेष/विषमता ना शेष रहे ॐ  शांति ॥ 




अंत में माँ वीणावादनी के चरणो में सबके लिए सादर विनय 
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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।। 

सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।





ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||

Saturday, April 8, 2023

मानव का ईतिहास



मानव का ईतिहास !

मानवता के 
ह्रास का भी / दस्तावेज है ?

इसे
झूठ के पुलिंदो
और
अनगिनत 
लाशों से...

छुपा दिया गया है !
करोड़ो शब्दों की
सुखी घास के पीछे ...

जो 
सुलग उठती है
सच 
और 
साहस के
एक झौके से ...

जो
पैदा होता है
भूख 
और 
युद्ध की कोख से ?

जिसमे 
जल जाते है
काले पड़ जाते है...

कई चहरे
जो पूजे जाते थे
जलसा घरों से
न्यायालयों तक ... ?

अगर 
सच ही पढ़ना है
तो कहानी 
या कविता पढ़ना ...

वरना 
वक्त बिताने के लिए,
ईतिहास 
अच्छी चीज है !



#मानव_का_ईतिहास
#historymankind

Friday, April 7, 2023

और आत्मसम्मान बिकने लगा




पापा !

मुन्नू के पापा
उसे कार से
स्कूल छोड़ते है ...

और आप
फीस के लिए
गुल्लक तोड़ते है ?

मैं
आजकल
थोड़ा उदास रहता हू...

अपना दुःख
भीतर ही
सहता हू...

आप गुस्सा होंगे
इसलिए
नहीं कहता हू !

पापा
मैं समझता हू
 
आपने
कुछ सोच कर ही
इस स्कूल में डाला है
 
ये आपके
सपनों की पाठशाला है !

मगर
आप नहीं जानते...

टीचर से
ड्राइवर अंकल तक
सब
भेद करते है,

अपनी सोच का जहर
मेरे
नन्हे दिमाग में
रोज भरते है,

मैं क्या करू ?

मुरझा कर
रह जाता हू
 
तभी तो
बोर्नविटा पीकर भी
पनप नहीं पाता हूँ,

उसका
उतना दुःख नहीं है
 
आपके करीब होना
कम सुख नहीं है
 
मैं पलभर को
अपना गम
भूल भी जाता हू
 
जब
आपसे लिपट जाता हू
 
मगर फिर
जब माँ
आपसे तकरार करती है ....

बंगले
गाडी का
इसरार करती है...
 
तब मैं भी
मचल जाता हू !
 
जब वो ही
नहीं समझती
आपकी मजबूरी,
 
मेरी तो
अभी समझ भी
है अधूरी !

पापा !
मैंने भगवान से
कहा है...

मेरे पापा को
खूब पैसा देदे,

जिससे
खरीद सके वो
हमारे लिए
ढेर सारी खुशियाँ
 
और
अपने लिए
थोड़ा सा
सम्मान भी |


पापा !
ये "आत्मसम्मान" किसे कहते है ?

मैंने टीचर दीदी से पूछा
मगर वो
नाराज हो गयी !!

क्यों पापा ?
क्या वो इतनी बुरी चीज है ???

Thursday, April 6, 2023

मैं क्या कह दू




मैं क्या कह दू ?

खुद से !

कि
मौन हो जाऊ...

बंद कर दू
व्यर्थ जतन सारे ,

स्वयं को ही
मनाने के...

आते हो जब मुझे
सौ बहाने !

रूठने के
टूट जाने के !

अपनी ही
गलियों में !

भटकता
फिर रहा हूँ
सदियों से...

तुम 
ये कहते हो ,

तुम
जान पाए थे !

कि 
जिस लम्हे,

मैंने
धरा था मौन...

और तुम
बौखलाए थे ?

मैंने
मुखर होना
वही तो सीखा था !

वहीँ
कुछ हुनर भी
आजमाए थे ... 




Friday, March 31, 2023

लिखने का नैतिक दुस्साहस !



लिखने का नैतिक दुस्साहस !
करते है
कुछ
मेरे जैसे लोग
कुछ
तुम में से भी होंगे
बिना जाने
कि
कैसे एक एक शब्द
एक एक वाक्य
तुम्हारा पर्याय बन
जुट जाता है
उस रचना में
जो शायद
मेरा
या
तुम्हारा
मंतव्य ही ना था
सोचा ना था
इतनी दूर निकल जायेंगे
वो शब्द
और
इतना
विराट होगा
उनके अर्थों (अनर्थों !)
का फैलाव
कि
फिर समेट ही ना सकेगा
कोई कवि
कभी
उस भटकाव को
फिर
चाहे
कितने सुन्दर
अलंकारों
और
सधे छंदों में
रचते रहों
श्रष्टि पर्यंत
वेदों पर उपवेद
और
महाग्रंथ
या उनपर भाष्य
छद्म मनुष्यता
अश्प्रश्य ही रहेगी
चाहे पहन ले
कितने ही
शब्दाडम्बरों के
चमचमाते
चौधियाते
मुक्ता मणि |

Wednesday, March 29, 2023

जगदम्बा सिद्धिदात्री ..... तू देती है केवल देती ही है माँ !



तेरी महिमा बखान सकू 
जग में कोउ भया ना कभी 
मेरी हस्ती किंकर सी 
तू ब्रह्मांड-उदरी विश्वेश्वरि 

ज्ञान चक्षु दिए महादेव 
ब्रह्मा को रचना का पुण्य काज 
रखवाली करते श्री विष्णु 
करती त्रिलोकी अभय उद्धार 

सब स्वरूप माता स्वयं 
सर्वत्र अजनमा अबूझ महान 
अनुभूति , प्रज्ञा भी 
आदि भी हो स्रोत स्वयं 
वेद प्रकट करते चराचर 
उनको देती हो स्वयं ज्ञान 

जय जय माँ सिद्धि दात्री 
जय जगदम्बा मातु देऊ वरदान 
जीवन , ज्ञान दिया धन मान 
हो सफल बढ़ाऊ तेरो मान 

जय माता दी ! सभी भक्तजनो को नवरात्री महापर्व एवं मर्यादा पुरुषोत्तम सीतापति श्री राम चंद्र के प्रकटोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये !
माँ भगवती की कृपा से नव विक्रम सु-संवत २०८० , पिंगल नामक यह नव संवत सब प्रकार से मेरे , आपके एवं हमारे परिवार जनो , शुभचिंतकों के लिए , धन धान्य , उत्तम स्वास्थ्य और उपलब्धियों से भरा हो !
माता रानी सब उत्सवों को आनंदमय और उल्लास आह्लाद से आप्लावित कर , जीवन को धन्य करे !
जय माता दी ! जय श्री राम ! वन्दे भारत मातरम !

माँ महागौरी तेरी महिमा अपरम्पार

 

 
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तप , त्याग , क्षमा की मूर्ति
लक्ष्मी ,काली ,कल्याणी !
सब जग रची महू आप विराजी ,
तू ही रमा ,शारदा ,वेदवाणी !

ब्रह्मा रची फिर वेद रचे चारि ,
रची सृष्टि त्रिदेव शरण मानी !
शिव चौको कियो सती सु नारी ,
तू ही जगजननी , उमा , भवानी !

संशय दुःख ताप हरति जग का
आप हवन हो शुभ देती महादानी !
तुम्हरे चरण भेंट करू अल्पज्ञ मति
माँ ! तुम अथाह ज्ञानराशि मै अज्ञानी ||

जय जय माँ महागौरी ! माँ जगदम्बा !!