Sunday, April 16, 2023

आज फिर सपना देखा



आज फिर 
सपना देखा ...

मज़हब से आतंक 
राजनीति से अपराध 
व्यापार से कालाधन 
दफ्तरों से भ्रष्टाचार 
अंचलों से बेरोजगारी 
शहरों से गरीबी 
गलियों से गुंडे 
सरकार से झूठ ...
समाप्त हो गए !?!

आज फिर 
आँख खुल गयी ...

जो देखा 
वो तो सपना था 
जीवन और यथार्थ में 
कोई सपना 
जी नहीं सकता 
कोई प्यासा 
नींद में
पानी पी नहीं सकता ...

आओ 
जागे और जगाए !
सोई चेतना को,
उपेक्षित गौरव को ...

कोई !
गीता में 
शंखनाद कर 
कह रहा है ...

पुण्यवान हो ! पुण्यवान हो !!
तभी तो 
जन्मे हो 
मनुष्य होकर ...

सहस्र कोटि 
ब्रह्मांडो में 
पंगु विज्ञान 
आज तक तो 
ढूंढ़ नहीं पाया 
दूसरा मनुष्य ?

तुम क्यों ..
उसके तर्क पर !
बेसुध हुवे ,
नकारते हो ,
स्वप्रमाणित ,
सर्वज्ञ आप्लावित ,
ईश्वर को... ?

ठहरो ज़रा ..
सोचो ज़रा ...
समझो तो ज़रा  !!!


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