कितने उदास है
बच्चे आजकल फोन से , हर पल
एक पेड़
एक चिड़िया भी तो
दोस्त नहीं उनकी
थक गए है
भाई बहन भी अब
झगड़ झगड़
तमाम साधनों से
झरती मनोरंजन
की बाढ़ में भी
बोरियत
ढूंढ लाते है वो
इस उम्र में ही
अनुभवहीन
कल्पनाओं में
थका रहे खुद को
संघर्ष नहीं
मनोरंजन की
ठंडी भट्टी में
गला रहे खुद को
माँ बाप
लाचार से
अँधियो में
अंधे प्रचार की
दीपों को
जलाए रखने की
उम्मीद
और
प्रार्थना भर
कर सकते है
तमाम तिलिस्म है
कैद है बचपन
दिन में सौ बार
फना हो कर
फिर मर सकते है
क्या बचेंगी
संवेदनाएं भी
भावी पीढ़ी पे
भरोसा ये कर सकते है ?