जहां
मेरे नाम भी
एक जमीन हो
जिस पर
चला सकूँ हल
बो सकूँ
सपनों के बीज
जहां
सावन
तकादे ना कराये
ना ही
बिन बुलाये
बाढ़ / सूखा
थोप दिए जाए
जिसके बहाने
सरकारी अमरबेल
फिर
पनप जाए
मैं तो
परदेस में
ईटें बनाता हूँ
सुना है
मेरी
गिरवी
खपरैल पर
नेता मुरदार
वोट
माँगने आये रहे
ना
हम नाही गए
बटन दबाने
और
ऊँगली पर निसान
अरे
ये तो ईटा से
कुचल गयी
मुद्दा
हम तो
कब से
"देस" गए ही नाही !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
धन्यवाद बंधुवर !
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