एक सार्वभौम प्रासंगिक सन्दर्भ : मधुसूदन उवाच ! (गीता : द्वितीय अध्याय - भाग १ )
तब उस
करुणामूर्ति ने
करुणापूरित
अश्रुरत
नत नयन
भीत भी
क्लांत भी
गांडीव धर चुके
पस्त हृदय
अर्जुन के प्रति
यो कहा
जैसे
युगों से कहा ...
मधु मर्दन ने
हां
जिसने
स्वयं की माया से
उत्पन्न
मधु को
कैटभ संग
मरीचिका के उत्तल पर
जंघा ही को
धरा कर
छिन्न मस्तक
किया था कभी ...
उसने
हां उसने कहा
तभी तो
अब तलक ये
सन्दर्भ
सार्वभौम और
प्रासंगिक रहा
टिका रहा |
युक्त श्री और समस्त
ऐश्वर्य/वीर्य/स्मृति/यश/ज्ञान से
वही श्री भगवान् स्वयं ,
पूछते विस्मय का स्वांग भर ...
हे अर्जुन !
क्यों माननीयों के द्वारा
निर्णित समर समवेत में ,
प्रश्न पूछते हो अग्य-मूढ़ से ?
तुम्हारे शोक-पीड़ा-संवेदना में
झलक रही बस
कातरता ,
पौरुषहीन-दीनता ही मुझे !
तुम्हारा पलायन
न इस लोक में यश देगा ,
ना परलोक में सुख ही कभी !
कायरता और शोक ,
रणभूमि में वर्जित सदा !
त्याग कर तुच्छ
हृदय की दुर्बलता ,
धर गांडीव खड़ा हो पार्थ !!
प्रत्युत्तर को
प्रस्तुत अधर्म के
सन्नद्ध हो !!!
वर-वीर अहो ! सेनानी !!
इन शस्त्रों के निमित्त ही ?
इस घड़ी ही की आयोजना में ??
तो तप-रत रहा न तू अभिमानी ???
source : Bhagwad Geeta , chtr-2, ver -1
सञ्जय उवाच॥
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥२-१॥ .....
तब करुणापूरित वयाकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त अर्जुन से मधु का वध करने वाले श्री भगवान ने ये वचन कहे
Sanjay
says – Then, the destroyer of Madhu, Sri Krishna said to compassionate
and sorrowful Arjun, who was anxious with tears in his eyes-॥1॥
गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – २
श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम् कीर्तिकरमर्जुन॥२-२॥
-: हिंदी भावार्थ :-
श्रीभगवान
बोले- हे अर्जुन! तुम्हें इस असमय में यह शोक किस प्रकार हो रहा है?
क्योंकि न यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग देने वाला है और न
यश देने वाला ही है॥2॥
Lord
Krishna says – O Arjun! How can you get sad at this inappropriate time?
This sadness is not observed in nobles, it also does not lead to either
heaven or glory.॥2॥
गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ३
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२-३॥
-: हिंदी भावार्थ :-
हे
पृथा-पुत्र! कायरता को मत प्राप्त हो, यह तुम्हें शोभा नहीं देती है। हे
शत्रु-तापन! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्याग कर(युद्ध के लिए) खड़े हो
जाओ॥3॥
O
son of Prutha! Do not yield to weakness, it is not apt for you. O
tormentor of foes! Cast aside this small weakness of heart and arise(for
battle).॥3॥
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