क्रमश: भाग १ से आगे
समाधि के
वह छ: दशक
यू ही बीत गए
सोते संबल के
सब क्षण में रित गए
जैसे दूध फट जाता है
गिरते ही अम्ल की बूंद
बहुत विकल्प
तलाशते / तराशते
जनदेव अब
बुढ़ाते से लगने लगे
उनकी चिर यौवना सखी
सौन्दर्य स्वामिनी
सत्ता तब प्रकट हुई
समस्त वैभव
और पूर्ण प्रभाव के साथ
आलोकित हो उठे
जन गण मन प्रफुल्लित
तब
मंद स्मित से
बोली वह
हे प्राणाधार
आपको नहीं देख पाती हूँ
यू विवश व्याकुल अधीर
क्यों सूखा जा रहा
प्रभु के मुख का नीर
यू शुष्क गात
पिचके कपोलो को
अब सह ना पाउंगी
स्वामी , व्रहद्द जग को
क्या मुह दिखाऊंगी
जब की सत्ता ने बहुत चिरौरी
कुछ अस्फुट सा बोले
पहली बार जनदेव
"दिल्ली चलो " देवी
दिल्ली चलो ...
देखिये अब दिल्ली में क्या कुछ हुवा सो तो जनदेव जाने ,लगी हुई है सत्ता उन्हें दिल्ली भिजवाने सो तब तक भक्तों धीरज धरो और बोलो जय जय जनदेव ! दिल्ली चलो जनदेव ! दिल्ली चलो जनदेव !
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