रोज
खबरों पर
मिडिया में
खुद को
देखते
पढ़ते
सुनते
समझ
बौराने लगी है
एक मेरे सिवा
सब को
फ़िक्र है
मेरी नहीं
मेरे मजहब
और
उस पर चिपके
पैबंद की
मैं भी
"जिहाद "
चाहता हूँ
जहालत
गरीबी से
निजात चाहता हूँ
मगर
लगता है
आसान है
ऐसे ही
खबरी मौत
रोज मरना
सचमुच
बहुत
कठिन है
जीना
जी कर
मुसलमा होना ...
इस्लाम
एक पिंजरा है
जो
उड़ना चाहता है
और
बंद भी रहना
भीतर से !!!