नारी
एक छेद भर नहीं है
के
तुम उढेल दो
अपनी कुंठाएं
और
पूर्वाग्रह
नारी
बिस्तर भी नहीं है
के
तुम बिछा दो
ढक दो
तप्त
नंगी
सच्चाइयों को
नारी
खिलौना नहीं है
के
बदलते रहो
तोड़ते रहो
अपनी समझ के
बुढ़ाने तक
नारी
शराब नहीं है
जो
परोसी जाए
गलीज सौदे के एवज
नारी
सीढ़ी नहीं है
के
घिसती रहे
पत्थर होने तक !
नारी
एक दिल है
आत्मा है
आस्था है
स्तम्भ है
जिस पर टिकी है
खोखली इंसानियत
जिसकी अगुवाई
सिर्फ
पुरुष करते आये है ..... अब तक !