उसका कर्मवाद /
प्रेमचंद की
पिसनहारी / से
गोर्की के
आवारा मसीहाओं तक..
बहुत सटीक
संदर्भित है
जीवन
पता नहीं क्यों
हम
पुराने संदर्भो में
नए आयाम तलाशते है ?
शायद
हमारी
इसी तंद्रा ने
हर ली है,
जीवन की सरलता !
अनुभव बिना ज्ञान
और
ज्ञान बिना अनुभूति ?
बन रहा है
दुरूह भविष्य
जिसकी बुनियाद में
जब कभी तलाशोगे
तर्क ही निकलेंगे ...