खो ना जाए मिटटी ही में
उसे पनपने दोगे ना !
अपने भागते जीवन में
उसे भी जगह दोगे ना !
कुचल तो नहीं दोगे ?
अंधी दौड़ में
कोई बचपन
गति
अन्धविकास की
थाम कर
कुछ क्षण
उसे राह दोगे ना !
वो क्या देगा ?
ये ना समझ पाओगे
अभी
तो भी
झंझावत में समय के
किनारे ढूंढ़ती
मानवी जीवन रेखा के
संबल के खातिर ही
अकिंचन बात मेरी
मान लोगे ना !