ये ध्वज
ये भूमि
सब अपने
इस राष्ट्र देव में
समाहित है
जाती से
वर्णों से
ऊपर
कहीं
सब धर्मों को
समेटे
एक आँगन में
धूप छाव सा
शहर गाँव सा
राष्ट्र देव
लेता है
केवल भाव
अर्पण करो
वही से
जहां
जब
जैसे
तुम हो |
राष्ट्र है |
एक है |
सबल भी है |
बस
आस्था भर
पवित्रता चाहिए
देखो ..
वो राष्ट्र देव
जगता है |
जगाता है |
जंतर मंतर पर
कोई संत
एकता का
सूत कातता है
अनुशासन का
चरखा चलाता है
स्वाभिमान से जीना
सिखाता है |