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Monday, September 27, 2010

विलंबित मौन है न्याय पर , राम पर !

विलंबित मौन है न्याय पर , राम पर !
उन्होंने मस्जिद तोड़ी
ये कहकर के
वो उनका मंदिर थी
उन्होंने
मंदिर भी तोड़ दिया
राम का
आस्था का
लोकतंत्र का

अब
किसका न्याय होगा ?
करेगा कौन ??
किसके पक्ष में ??
राम के ?
आस्था के ??
या
लोकतंत्र के ???

अंतहीन प्रश्नों के
आधारहीन सिलसिले है
लाशो पर
कारसेवको
और
उनके विरोधियों की
कितने
कारोबार खड़े है
उनकी ही रक्षा में
ये
विलंबित मौन है
न्यायालय नहीं बताता
क्योकि
नहीं जानता
कौन जिम्मेदारी लेगा ?
राजी कौन है ??
जनता मौन है !
नेता मौन है !
मंदिर मौन है !
मस्जिद मौन है !

आखिर इस फसाद का
व्यापारी
खरीददार
वो
गद्दार कौन है ???