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Tuesday, January 9, 2024

व्याख्याएँ



एक शब्द में 
समेट लेता था
मैं पहले 

रिश्तें ,
आदर 
और 
संवेदनाएं |

तुमने 
जब तक 
दिए ना थे ...

प्रचलित पर्याय |
नाकारों ने 
पीकदान की तरह
थूक रक्खे है ,
चारो तरफ ...

सरकारी दीवारों ,
धर्मशालाओं 
और मंदिरों के 
पवित्र प्रान्गनो तक...  

द्विअर्थी मुहावरे 
जिनके बीच 
दुरूह हो गयी है ,
आत्मीय शब्दों की 
सहज व्याख्याएं !

और हम 
हैं कि 
घुसने देते है ,
इस शब्द प्रदूषण को 
घर के भीतर !!

जहां 
बच्चे भी 
तुतलाते हुवे 
जवान हो गए है ...

अचानक !!!.....
नहीं बंधू !
सब अचानक ही तो 
नहीं होता ना ???
हमेशा ...