एक शब्द में
समेट लेता था
मैं पहले
रिश्तें ,
आदर
और
संवेदनाएं |
तुमने
जब तक
दिए ना थे ...
प्रचलित पर्याय |
नाकारों ने
पीकदान की तरह
थूक रक्खे है ,
चारो तरफ ...
सरकारी दीवारों ,
धर्मशालाओं
और मंदिरों के
पवित्र प्रान्गनो तक...
द्विअर्थी मुहावरे
जिनके बीच
दुरूह हो गयी है ,
आत्मीय शब्दों की
सहज व्याख्याएं !
और हम
हैं कि
घुसने देते है ,
इस शब्द प्रदूषण को
घर के भीतर !!
जहां
बच्चे भी
तुतलाते हुवे
जवान हो गए है ...
अचानक !!!.....
नहीं बंधू !
सब अचानक ही तो
नहीं होता ना ???
हमेशा ...