क्रिकेट कभी अपनी जिन्दादिली और जांबाजी के लिए जाना जाता था , बदलते नियमों ने जहां तेज गेंदबाजी को मलिंगा जैसे चकर के हाथ पहुंचा दिया वहीँ इस खेल की सर्वोच्च संस्था मुरली जैसे चकर को विश्व रिकार्ड बनाने के लिए आधारभूत नियम तक बदल डालती है |अगर गेंदबाजी कि वह धार कायम रहने दी जाती तो कई भगवानो को आइना देखना पड़ता मगर जिस तरह नियमों का बहाना बना कर भारतीय हाकी को कुचला गया , उसी तरह WESTENDISE जैसे देश में खेल को बोथरा करने के सारे प्रयास किये गए और इसी संस्करण में २०-२० का बच्चों वाला क्रिकेट लाकर पहले ही इस खेल के चाहने वाले (समझने वाले ) दिलों को कब का तोड़ा जा चुका है | अब तो ये एक मंडी है जिसमे सब बिकता है और इस मंडी के दलाल कौन है सब जानते है |
आज बदल चुके परिवेश और प्राथमिकताओं के दौर में पिछड़ चुके भर्स्ट देश के लिए २८ वर्ष के बाद मिला यह कप किसी दकियानूसी परिवार में , बुढापे में जन्मे बालक , जैसा है |इस पर मिल रही प्रतिक्रियाये तो हमारे नितांत खाप समाजी सोच को ही बताती है | जिस खेल ने राष्ट्रीय खेल सहित सभी प्रतिभाओं को साबुत निगल लिया हो उसके अति दीवानगी दिखाती भीड़ में वो पालक भी होंगे जिनके नौनिहाल कई क्षेत्रों में देश का नाम रौशन कर सकते होंगे और हम ऐसा चरित्र दिखाए भी क्यों ना , आखिर गर्व करने के लिए , बलात्कारी भ्रष्ट और गरीब देश के पास यही तो उपलब्धि है |
ग़ालिब चचा का शेर याद आता है "हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है। "
ग़ालिब चचा का शेर याद आता है "हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है। "
भारत जैसा देश जिसकी ना मालुम कितनी जनसंख्या , खिलौना बन चुकी गरीबी रेखा के नीचे सड कर मरने के लिए मजबूर कर दी गयी है | जो देश शिक्षा तक का विनिवेश करने पर उतारू है | उस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी नेता , जिनमे देश के सर्वोच्च आसनों पर विराजित महानुभाव भी है , आज सभी मेहनत से कमाई देश कि पूजी खेल तमाशों पर लुटाने को बैचैन दिखते है | ये इस देश के लिए घोर शर्म और निराशा का विषय है की इसने तुच्छ स्वार्थी घरानों और प्रतिष्ठानों का हित साधने के लिए अपना विवेक भी घिनौने शो बाजार के बिस्तर पर चढ़ा दिया है |
जनता वही स्वांग रचती है जिसको महामना अपनाते है तो किस मुह से हम अपनी अगली पीढ़ी को मानवता के पाठ पढ़ा कर ये अपेक्षा रख पायेंगे की वो देश कि सदियों पुरानी साख को बढाए ना सही बरकरार ही रख सके | इस जूनून को देख कर तो भविष्य गर्त में जाता दिखता है |
शर्म करो इंडिया शर्म करो !!!