हिंदी का मान हमसे है !
हिंद का अभिमान है, हिंदी |
इतनी सी आस और है बंधू
विश्वभाल दमके ये बिंदी ||
अपनी भाषा अपना गौरव ,
जाने कब के भूले तुम हम !
गैरों को पग पग पे नवाजा ,
अपना मजहब भूले तुम हम !
कैसे हिन्दी का परचम लहरे ,
कैसे साथ साथ तिरंगा फहरे !
हिंदी की सीढ़ी पर कितने पहरे ,
अलगाव तुष्टि के घाव है गहरे !
इसमे ही बसा भारी जनाधार ,
कितनो की करती कश्ती पार !
आज मातु है स्वयं मझधार ,
कहने को जन गण भले अपार !
धिक्कार करो इस जीवन पर ,
यदि निज भाषा का मान ना हो !
अधिकार करो उस सत्ता पर ,
जिसे निज गौरव का भान ना हो !
सजीव शब्दों का संधान करो ,
निज भाषा का अनुसंधान करो !
फिर धरो प्रत्यंचा भावो की ,
सब सुलभ लोभ का दान करो !
हो कर्मवीर तुम हो रणधीर !
क्यों काँधे को झुला रहे ?
क्यों शिथिल हुई तनी भवे !
क्यों भविष्य को रुला रहे !!
निज घर से निज आँगन से ,
तुम माता का आह्वान करो !
हे मातृभाषा ! हे भावभरी !!
आओ ! हो प्रगट,
हिंद उद्धार करो !!
हिंद का अभिमान है, हिंदी |
इतनी सी आस और है बंधू
विश्वभाल दमके ये बिंदी ||
अपनी भाषा अपना गौरव ,
जाने कब के भूले तुम हम !
गैरों को पग पग पे नवाजा ,
अपना मजहब भूले तुम हम !
कैसे हिन्दी का परचम लहरे ,
कैसे साथ साथ तिरंगा फहरे !
हिंदी की सीढ़ी पर कितने पहरे ,
अलगाव तुष्टि के घाव है गहरे !
इसमे ही बसा भारी जनाधार ,
कितनो की करती कश्ती पार !
आज मातु है स्वयं मझधार ,
कहने को जन गण भले अपार !
धिक्कार करो इस जीवन पर ,
यदि निज भाषा का मान ना हो !
अधिकार करो उस सत्ता पर ,
जिसे निज गौरव का भान ना हो !
सजीव शब्दों का संधान करो ,
निज भाषा का अनुसंधान करो !
फिर धरो प्रत्यंचा भावो की ,
सब सुलभ लोभ का दान करो !
हो कर्मवीर तुम हो रणधीर !
क्यों काँधे को झुला रहे ?
क्यों शिथिल हुई तनी भवे !
क्यों भविष्य को रुला रहे !!
निज घर से निज आँगन से ,
तुम माता का आह्वान करो !
हे मातृभाषा ! हे भावभरी !!
आओ ! हो प्रगट,
हिंद उद्धार करो !!