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Thursday, February 3, 2011

आज से , अभी से...यही से |

इस देश को
एक झंडे
एक नक़्शे
एक भाषा
और
एक भाव में
देखना
असंभव है |

जब तक
कोई
आक्रमण ना हो
विजय ना हो |

युद्ध ही
मात्र विकल्प है
यदि तो
युद्ध ही सही
साथ खड़े हो
भुलाकर
अबूझ रेखाएं
आओं
सम्हाले
बनाए
मिटती
सिमटती
सीमाएं |

मात्र प्रहरी
नहीं लड़ पायेंगे
आक्रान्त
पडोसी से
आओ
एक हो
उन्हें
अपना
मंतव्य बताये
उनका
मनोबल बढ़ाये |

यही से
अभी से
तुम भी
मैं भी
सेनानी बन
लिखे
पढ़े
कहे
सुने
गुने
कुछ भी
जो पास हो
सहज हो
राष्ट्रहित में
हर संभव
कदम
उठाये |

पर
बढाने से पहले
जरुरी है
स्वर ना सही
कदम
मिलाएं
हाथ
मिलाएं |

जरुरी है
हर
स्वघोषित
महामना से
नजर मिलाएं
गर्व का भाव
गुनाह नहीं है
जरुरी नहीं है
मातहत ही
केवल
सर झुकाएं |

सेवाओं में भी
सरोकारों में भी
वय से
अनुभव से
अवदान से ही
सम्मान दे
मान पाए |

गर बदलना है
विडंबनाओं को
दोहराने से
तो सीखना होगा
पिछले अफसाने से |

बुरा नहीं है
इतिहास पढ़ना
बुरा है
पढ़ कर
भूल जाना |

उन्हें
तुम्हारी जयंतियों
और
मालाओं से
कभी
कही
सरोकार नहीं रहा
अरे
ये कर्तव्यपूर्ति कर
किसे भरमाते हो
क्या कभी
रक्त सिंचित
स्वतन्त्रता के
उपभोग पर शर्माते हो ?

यदि हां
तो
कभी पीछे मत चलना
गद्दारों के
ये यंत्र है
रुपयों के
हथियारों के |

यदि ना
तो
ये तय रहा
तुम्हे भी मिटना होगा
साथ
इनके
पिस जाते है
जैसे
गेहू के साथ
घून
तिनके |