Saturday, February 13, 2010

आज कुछ ना कुछ लिखूंगा जरुर ,

विषय कोई भी ,
भाव कोई हो चाहे ,
लय मिले ना मिले ,
कहा योग बनता है ,
इस आपाधापी में ,
के
कर सकूँ मन की ,
कर सकूँ
कुछ
सार्थक सा |
क्या पता ,
कल के लिए
ये शब्द ही
बन जाएँ पूंजी ,
और
इन्ही का पुल बनाकर ,
शायद
पांट सकूँ,
सदियों की
उस दुरी को
जो
मेरे और तुम्हारे
बीच है
चाहे भाषा, रंग , जन्म
या ऐसे ही किसी
मनगढ़ंत अन्धानुकृत निर्मूल
बेमतलब भारी से
मगर
मात्र नाम के आधार |
यकीं करों !
मेरा नहीं यार
अपना ही
बस एक बार
सब और से
आँखें मूंदकर
समेट सहेज कर स्व को
देखो
उस आस्था की जमीन को
जिसमें
विश्वाश का अंकुर
फूटना चाहता है
बस थोड़ी करुणा
और प्रेम से सिंचों
कभी कभी
तर्क और व्यवहार से परे जाकर
सहज
इंसान
महज
इंसान
बनकर
कर डालो
कुछ
अकर्म ही !

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