Thursday, May 12, 2011

अदद एक ईमानदार रचना के लिए



प्रयास रत हूँ मैं 
जूझ रहा हूँ 
स्वयं से 
अपनो से 
परायों से 
व्यवस्था से 
कि 
लिख सकू 
चिर प्रतीक्षित 
ईमानदार रचना 
जिसमे 
उघाड़ दूँ 
स्वयं और समाज को 
मर्यादित ही 
अनावृत्त कर दू 
मानवीय संवेदना के 
आदि स्रोत 
और 
उसके प्रयोजन को 
निहितार्थ को  
परिणिति को 
सरल 
सहज शब्दों 
और 
शुद्ध 
आडम्बरहीन
रचना द्वारा 
गाई भले ना जा सके 
पचाई जा सके 
ऐसी 
सर्वकालिक 
मौलिक रचना का 
आपकी तरह 
मुझे भी 
इन्तेजार है  ...

1 comment:

  1. सुन्दर कविता तरुण भाई...

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