Sunday, May 15, 2011

उसमे वो आग अभी बाकी है



खबरे पढ़ कर 
जी करता है 
अखबार जला दू 
ख़ुदकुशी कर लू 
गोली ही मार दू 
समाज के नासूरों को 
फिर 
कुछ सोच कर 
रोता हूँ
हँसता हूँ 
मन बदल लेता हूँ 
दर्शन की आड़ ले लेता हूँ 
खुद को 
बहलाता हूँ 
औरों को 
समझाता हूँ 
बस 
बहस नहीं कर पाता 
किसी युवा से 
क्योंकि 
अगर उसने ठान ली 
तो मैं जानता हूँ 
सब बदल डालेगा 
होम हो जाएगा 
बदलाव के हवन में 
मैं जानता हूँ 
क्योंकि 
मैं भी 
कभी 
ऐसा ही हुवा करता था  
टटोलता हूँ 
भीतर 
कही वो आग 
शायद अब भी बाकी हो ...
-- 

2 comments:

  1. Krantikari Soch par haavi .... Duniyadaari ..
    ek Laachaar Aadmi ...

    ReplyDelete
  2. उसमे वो आग अभी बाकी है

    ReplyDelete