जी करता है
अखबार जला दू
ख़ुदकुशी कर लू
गोली ही मार दू
समाज के नासूरों को
फिर
कुछ सोच कर
रोता हूँ
हँसता हूँ
मन बदल लेता हूँ
दर्शन की आड़ ले लेता हूँ
दर्शन की आड़ ले लेता हूँ
खुद को
बहलाता हूँ
औरों को
समझाता हूँ
बस
बहस नहीं कर पाता
किसी युवा से
क्योंकि
अगर उसने ठान ली
तो मैं जानता हूँ
सब बदल डालेगा
होम हो जाएगा
बदलाव के हवन में
मैं जानता हूँ
क्योंकि
मैं भी
कभी
ऐसा ही हुवा करता था
टटोलता हूँ
भीतर
कही वो आग
शायद अब भी बाकी हो ...
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