कविता
जैसे कागज़ की नाव
समय सागर में
किनारे ढूंढ़ती सी
तैरती रहती है
नि:स्पृह ...
छूती है
परम को सहज ही
नहीं छूती
समय को
या समय ही
तैरता है
उस नाव के नीचे
उसी परम-आदर का
शब्दरूप है "गीता"
भगवत गीता रूपी कालजयी रचना करने वाले मात्र कवि श्री कृष्ण के परम चरणों में सादर समर्पित , उन्ही की रचना ... जय श्री कृष्ण !
very nice
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय बंधुवर !
Deleteआदरणीया ,
ReplyDeleteआपसे सदा ही आशीष मिलता रहता है , आपके सतत उत्सावर्धन के लिए अकिंचन धन्यवाद स्वीकार करे |
स्नेह व आशीष बनाए रखे --
With Regards
Tarun Kumar Thakur