Showing posts with label कागज़ की नाव है कविता A Poem is like boat of paper. Show all posts
Showing posts with label कागज़ की नाव है कविता A Poem is like boat of paper. Show all posts

Tuesday, January 10, 2012

कागज़ की नाव है कविता


कविता 
जैसे कागज़ की नाव 
समय सागर में 
किनारे ढूंढ़ती सी 
तैरती रहती है 
नि:स्पृह ...
छूती है 
परम को सहज ही 
नहीं छूती 
समय को 
या समय ही 
तैरता है 
उस नाव के नीचे 
उसी परम-आदर का 
शब्दरूप है "गीता"

भगवत गीता रूपी कालजयी रचना करने वाले मात्र कवि श्री कृष्ण के परम चरणों में सादर समर्पित , उन्ही की रचना ... जय श्री कृष्ण !