कविता
जैसे कागज़ की नाव
समय सागर में
किनारे ढूंढ़ती सी
तैरती रहती है
नि:स्पृह ...
छूती है
परम को सहज ही
नहीं छूती
समय को
या समय ही
तैरता है
उस नाव के नीचे
उसी परम-आदर का
शब्दरूप है "गीता"
भगवत गीता रूपी कालजयी रचना करने वाले मात्र कवि श्री कृष्ण के परम चरणों में सादर समर्पित , उन्ही की रचना ... जय श्री कृष्ण !