वह सफल हुवा
मन्त्र से
यंत्र तक
उसका स्वप्न
अब उड़ान पर था
वह
ईतिहास की
अनदेखी
उलझी हुई
ढलान पर था
उसका यान
ईतिहासकारों के
रक्खे
प्रपंच से
जा टकराया था
वह
अधूरे पथ में
काल यान से
बाहर
निकल आया था
वहा
पढ़े हुवे
अजनबी चेहरों में
कुछ ने
नकाब ओढ़े थे
कुछ
मुखौटे लगाए थे
अजनबी यात्री को
अपहरण कर
डाल दिया गया था
मध्युगीन
सामंती
कैदखाने में
जहां
मिले थे उसे
शिल्पी
शायर
और
वीर
जिनका
अनुभव
कौशल
और
कारनामे
छीन कर
सौप दिए गए थे
उन्हें
जिनका नाम
उसने
पढ़ा था
सरकारी
पुरस्कृत
प्रायोजित
किताबों में
ये बात ईतर है
कि
वो किताबे
बहुत महँगी
नहीं थी
फिर भी
उसने
रद्दी ही से खरीदी थी ...
वह कसमसा रहा था
आजाद होकर
चुरा ले जाना चाहता था
चंद चहरे
कहानीयाँ
दस्तावेज
ताकि
उसका बच्चा
जान सके
ईतिहास के पन्नो के
काले झूठ को
और
पढ़ पाए
गुण पाए
बुन पाए
कुछ
अनाम
असंदर्भित
मौन अवदान ...
अनलिखी
मिटा दी गयी
विस्मृत पंक्तियों
और
उनके बीच कहीं
कही बहुत गहरे
हाशियों पर शायद
उसने
छुपा दी थी
बहुत चतुराई से ...
दोहों
लोकगीतों
कहावतों
और
लोक कथाओं के
अबूझ रूप में ...
जिन्हें
आज फिर
नकार दिया जाएगा
ऐसे या वैसे
क्या फर्क पड़ता है
तुम्हे / मुझे
सच ही तो है
सुन बे "कबीर"
व्यग्र , आतुर , स्वचलित
इस पंच सितारा
संस्कृति(?) में
तू
पैबंद सा लगता है रे |
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