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Friday, July 1, 2011

काल यात्री का अपहरण























वह सफल हुवा 
मन्त्र से 
यंत्र तक 
उसका स्वप्न 
अब उड़ान पर था 
वह 
ईतिहास की 
अनदेखी 
उलझी हुई 
ढलान पर था 
उसका यान 
ईतिहासकारों  के 
रक्खे 
प्रपंच से 
जा टकराया था 
वह 
अधूरे पथ में 
काल यान से 
बाहर 
निकल आया था 
वहा 
पढ़े हुवे 
अजनबी चेहरों में 
कुछ ने 
नकाब ओढ़े थे 
कुछ 
मुखौटे लगाए थे 
अजनबी यात्री को 
अपहरण कर 
डाल दिया गया था 
मध्युगीन 
सामंती 
कैदखाने में 
जहां 
मिले थे उसे 
शिल्पी 
शायर 
और 
वीर 
जिनका 
अनुभव 
कौशल 
और 
कारनामे 
छीन कर 
सौप दिए गए थे 
उन्हें 
जिनका नाम 
उसने 
पढ़ा था 
सरकारी 
पुरस्कृत 
प्रायोजित 
किताबों में 
ये बात ईतर है 
कि
वो किताबे 
बहुत महँगी 
नहीं थी 
फिर भी 
उसने 
रद्दी ही से खरीदी थी ...
वह कसमसा रहा था 
आजाद होकर 
चुरा ले जाना चाहता था 
चंद चहरे 
कहानीयाँ 
दस्तावेज 
ताकि 
उसका बच्चा  
जान सके 
ईतिहास के पन्नो के 
काले झूठ को 
और 
पढ़ पाए 
गुण पाए 
बुन पाए 
कुछ 
अनाम
असंदर्भित 
मौन अवदान ...
अनलिखी 
मिटा दी गयी 
विस्मृत पंक्तियों 
और 
उनके बीच कहीं 
कही बहुत गहरे 
हाशियों पर शायद 
उसने 
छुपा दी थी 
बहुत चतुराई से ...
दोहों 
लोकगीतों 
कहावतों 
और 
लोक कथाओं के 
अबूझ रूप में ...
जिन्हें 
आज फिर 
नकार दिया जाएगा 
ऐसे या वैसे  
क्या फर्क पड़ता है 
तुम्हे / मुझे 
सच ही तो है 
सुन बे "कबीर" 
व्यग्र , आतुर , स्वचलित 
इस पंच सितारा 
संस्कृति(?) में 
तू 
पैबंद सा लगता है रे |
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