तुम
टीवी पर
ख़बरों में
खुद को पाओगे
खून से सना
नंगी होंगी
भूख
हवस
और
उसके बीच
बेबस
तुम
क्या तब भी
सोचोगे
इधर जाऊ
या
उधर ?
चुन लेना
अपना पक्ष
ताकत
और
खुले शब्दों में
वरना
मारे जाओगे
अप्रत्यक्ष चयन की
मृग मरीचिका में
आज कौन
अपने घर पर
कमा
खा
रहा है
फिर कौन
कहा से
इतनी संख्या में
मतदान को
आ रहा है ?
एक तो
संविधान सुन्न है
उसपर
चुनाव प्रक्रिया पर
आस्था का
संकट
गहरा रहा है |
रक्त रंजीत
क्रान्ति का
अध्याय
लिखा जा रहा है
मंचन का
मंथन का
मुहूर्त
निकट आ रहा है |
कसम खाओ
तब तक
बटन नहीं दबाओगे
जब तक
"किसी को वोट नहीं "
और
"मेरा वोट वापस दो"
का अधिकार
नहीं पाओगे |