बैचेन परिवेश
अजीब खबरे
एक घुटी घुटी सी
अनजान घबराहट
गावों से शहरों तक
चेहरा बन
उघड़ आई है
नकाबों के हटते ही
भीड़ है
कथा पंडालों
धर्मस्थलो पर
आस्था का उबाल
दिशा के बगैर
अनुशासन बिना
संकेत है
सरकार की
सफलता ?
और
तंत्र की
मजबूती का ??
देख नहीं रहे
सख्त
नियंत्रण है
शासन का
हालातों पर !
तुम भी
तुम भी
ख़्वामखा
घबरा उठते हो
खुश होने की बातों पर ?