बैचेन परिवेश
अजीब खबरे
एक घुटी घुटी सी
अनजान घबराहट
गावों से शहरों तक
चेहरा बन
उघड़ आई है
नकाबों के हटते ही
भीड़ है
कथा पंडालों
धर्मस्थलो पर
आस्था का उबाल
दिशा के बगैर
अनुशासन बिना
संकेत है
सरकार की
सफलता ?
और
तंत्र की
मजबूती का ??
देख नहीं रहे
सख्त
नियंत्रण है
शासन का
हालातों पर !
तुम भी
तुम भी
ख़्वामखा
घबरा उठते हो
खुश होने की बातों पर ?
वसन्त का सुहानापन वसन्त से अधिक हमारे मन में होता है. बहुत विचारशील सुन्दर कविता
ReplyDeleteआदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी ! प्रणाम !
Deleteबहुत आभार एवं अभिनन्दन
जय श्री कृष्ण जी !
वाक़ई फ़रवरी में पारा आसमान छूने लगा है, अब आगे क्या होगा
ReplyDeleteआदरणीया अनीता जी ! प्रणाम !
Deleteबहुत आभार एवं अभिनन्दन
जय श्री कृष्ण जी !