बहुत भीड़ है
हर जगह अनाम से
खुली
छूट है आरक्षित
ओट से देख लो
रंग आसमानी हो ग़र ...
फिर केसरी तो
सबसे अच्छा है !
फिर केसरी तो
सबसे अच्छा है !
सभी को फागुन की बहुत बहुत रंग भीनी शुभकामनाये !
जय श्री कृष्ण जी ! राधे राधे !!
फिर कोई लोभ का रावण , साधू सा वेश धर वोट मांगता है | शहीदों ने खिंची थी जो लक्ष्मण रेखा वो फिर लहू मांगती है || Tarun Kumar Thakur,Indore (M P) "मेरा यह मानना है कि, कवि अपनी कविता का प्रथम पाठक/श्रोता मात्र होता है |"
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ ०२-२०२३) को 'एक कोना हमेशा बसंत होगा' (चर्चा-अंक -४६४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता सैनी जी ! प्रणाम !
Deleteरचना को समर्थन देकर मंच प्रदान करने के लिए हृदय से साधुवाद !
चर्चामंच संचालक मंडली एवं आदरणीय डॉ. साहब को सादर प्रणाम !
आपका दिन शुभ हो !
जय श्री कृष्ण जी !
सुन्दर
ReplyDeleteप्रिय मित्र !
Deleteआपका दिन शुभ हो !
जय श्री कृष्ण जी !
बाहर का रंग कोई सा भी हो भीतर श्याम रंग लगा रहे
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteसादर वंदन एवं हार्दिक आभार
वाह , सचमुच मन की दुनिया के जाने कितने रंग हैं.
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteसादर वंदन एवं हार्दिक आभार
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteसादर वंदन एवं हार्दिक आभार
ReplyDeleteरंग धानी
न पहनो तो अच्छा है
चंद रोज
देख लो
रंग आसमानी
हो ग़र ...
फिर केसरी तो
सबसे अच्छा है !
बहुत सुंदर और सटीक ,गहन भाव।
आदरणीया
Deleteसादर वंदन एवं हार्दिक आभार