ये बजट कुछ अज़ीब है
चुनाव भी करीब है राहतों के गाँव में
समर्थनों के भाव में
बजट ये अबके ख़ास है
चुनाव के आस पास है कैसा रहेगा
ये बजट
किसी को पूछना हो गर
ऍफ़. एम् . पे
जा के पूछ ले
जा के पूछ ले
हरा है अबके
'आम' ये
के भगवा हो
रहा टपक
सोने का जो भी दाम है
पेट्रोल ही से काम है
दिल जला रहे यहाँ
गैस का क्या काम है
सौ के फिर करीब है
कौन यहाँ गरीब है
सेल्फ़िया खिचवा रहे
फिल्मों पे लुटा रहे
बी पी एल के देश में
आई पी एल के भेस में
अमीर भी गरीब भी
सब जाम है छलका रहे
फ़िजा को है महका रहे
तू आंकड़ों की बात कर
या डॉलरों पे आह भर
हम यू. एन. में ईतरा रहे
पाक को चिढ़ा रहे
चाइना को झूला रहे
छप्पन को फुला रहे
तुम भी थोड़ी देर पे
होंगे इस मुंडेर पे
तुम्हारे नेता आ रहे
संग उन्हें मिला रहे
भांग से कुवा भरे
सबको ही पिला रहे
तुम भी प्यारे सिख लो
जिंदगी के दांव पेंच
सरकार सब सीखा रही
रोजगार भी दिला रही
नियत बहुत ही नेक है
विपक्ष अँखियाँ झेंप है
मिडिया भी दिल फेक है
मित्र भी अनेक है
तो
अबके जो बजट मिले
अबके जो बजट मिले
उसपे सब निसार हो
पिछली बाते भूल जा
वादे सब बिसार दो
जो मिले उसमें खुश रहो
नहीं मिले तो फिर चुनो
चुनाव भी करीब है
तू कहा गरीब है
तेरे पास वोट है
मेरे पास नोट है
नकद नहीं उधार दे
मुझीको अबके यार दे
तेरा बजट
मेरा बजट कैसा है अबके
ये कपट...
वाह! बजट की पोल खोलती कुछ न कहकर भी बहुत कुछ बोलती रचना
ReplyDeleteआदरणीया अनीता जी ! नमस्कार !
Deleteआपके प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार !
जय श्री कृष्ण जी !
समसामयिक व्यंग्यात्मक बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteसादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी ! नमस्कार !
Deleteरचना को मंच देने के लिए एवं
आपके प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद के लिए भी
बहुत बहुत आभार !
जय श्री कृष्ण जी !
वाह वाह...
ReplyDeleteकमाल का बजट और कमाल का सृजन..
बस चुनाव भी करीब हैं ...
लाजवाब।
आदरणीया सुधा देवरनी जी ! नमस्कार !
Deleteबहुत बहुत आभार !
जय श्री कृष्ण जी !