Monday, January 30, 2023

तुम्हारी बाँ !

 

आज फिर
तुमसे
दुःख अपने
कुछ टूटे सपने 
बाँट रही हूँ 


बोया था
एक बीज तुमने
उसके विकसित
कल्प तरु से
थोड़े काँटे
कुसंग कीट को
सहला समझा  कर
छांट रही हूँ 


अंतराल के
नीरव
रौरव को
नयन नीर से
अंतस ही में
धीरे धीरे
पाट रही हूँ 


इंतज़ार के
औजारों से
जीवन की रेखा
घिसते घिसते
काट रही हूँ 


अनुभव के
निष्कलंक
कोमल
रेशों से
वही तुम्हारा
एक ख़्वाब तिरंगा
देसी चरखे पर
कांत रही हूँ ...

 तुम्हारी .....




10 comments:

  1. वाह ,बा कि तरफ से लिखी जाने वाली कविता पहलीबार पढ़ रही हूं । बेहतरीन

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    1. आदरणीया संगीता स्वरुप जी
      आपको सादर आभार !
      जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!

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  2. आदरणीया
    आपका बहुत आभार !
    जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!

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  3. आदरणीय
    आपको आशीर्वाद के लिए सादर आभार !
    जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!

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  4. किसी प्रेम पाती की तरह मन की बात ...
    बहुत सुन्दर ...

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  5. वही तुम्हारा
    एक ख़्वाब तिरंगा
    देसी चरखे पर
    कांत रही हूँ ...
    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति बा की पाती के रूप में। राष्ट्र के प्रति भावनाओं की प्रगाढ़ अनुभूति कराती रचना के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई।

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    1. आदरणीया
      आपका बहुत आभार !
      जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!

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  6. Replies
    1. आदरणीय संजय भास्‍कर ji
      आपका बहुत आभार !
      जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!

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