आज फिर
तुमसे
दुःख अपने
कुछ टूटे सपने
बाँट रही हूँ
बोया था
एक बीज तुमने
उसके विकसित
कल्प तरु से
थोड़े काँटे
कुसंग कीट को
सहला समझा कर
छांट रही हूँ
अंतराल के
नीरव
रौरव को
नयन नीर से
अंतस ही में
धीरे धीरे
पाट रही हूँ
इंतज़ार के
औजारों से
जीवन की रेखा
घिसते घिसते
काट रही हूँ
अनुभव के
निष्कलंक
कोमल
रेशों से
वही तुम्हारा
एक ख़्वाब तिरंगा
देसी चरखे पर
कांत रही हूँ ...
तुम्हारी .....
वाह ,बा कि तरफ से लिखी जाने वाली कविता पहलीबार पढ़ रही हूं । बेहतरीन
ReplyDeleteआदरणीया संगीता स्वरुप जी
Deleteआपको सादर आभार !
जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!
आदरणीया
ReplyDeleteआपका बहुत आभार !
जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!
आदरणीय
ReplyDeleteआपको आशीर्वाद के लिए सादर आभार !
जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!
किसी प्रेम पाती की तरह मन की बात ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
आदरणीय
Deleteआपका बहुत आभार !
वही तुम्हारा
ReplyDeleteएक ख़्वाब तिरंगा
देसी चरखे पर
कांत रही हूँ ...
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति बा की पाती के रूप में। राष्ट्र के प्रति भावनाओं की प्रगाढ़ अनुभूति कराती रचना के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई।
आदरणीया
Deleteआपका बहुत आभार !
जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!
बेहतरीन , लाजवाब
ReplyDeleteआदरणीय संजय भास्कर ji
Deleteआपका बहुत आभार !
जय जय माँ सरस्वती ! जय भारत !! जय भारती !!!