दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून
इंसानी खून
एक
शहीद
होता ताली पर
होता ताली पर
दूजा बस
कटा नाख़ून
साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय
सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय
एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय
एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय
एक
काटे
मारे मार
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय
काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर
शर्म ही से न मर जाय !