दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून
इंसानी खून
एक
शहीद
होता ताली पर
होता ताली पर
दूजा बस
कटा नाख़ून
साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय
सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय
एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय
एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय
एक
काटे
मारे मार
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय
काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर
शर्म ही से न मर जाय !
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आपके सतत प्रोत्साहन के लिए विनम्र साधुवाद !
Deleteप्रणाम !
मनमोहनी पोस्ट इतने वर्षों विलम्ब से प्राप्त हुई।
ReplyDeleteआदरणीय तिलक जी !
Deleteविलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आदरणीया
Deleteआपका बहुत आभार !
वाहः
ReplyDeleteगज़ब
आदरणीया
Deleteबहुत आभार !
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteआपका बहुत आभार !
वाह! आनंद आ गया । बहुत बढ़िया ।
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