Thursday, September 22, 2022

मच्छर बड़ा कि नेता ?


 

दोनों खाते
सुख और चैन
पीते
केवल
इंसानी खून

एक
शहीद 
होता ताली पर
दूजा बस 
कटा नाख़ून

साफ़ पानी में
एक है पलता
दूजा
गटर में भी
जी जाय

सख्त जान
दोनों की
पिए रक्त
ना शर्माय

एक मौसम में
ही भिन्नाता
दूजा
बारहों मास भिन्नाय

एक दे मारे
डेंगू मलेरिया
दूसरा
भ्रष्टाचार फैलाय

एक
काटे
मारे मार
स्वयं मर जाय
दूजा
तडपावे
जीतों को
अरु
मनुज मार के खाय

काहे छिड़के
धूंवा दवाई
करम सुन के
नेताओं के
मच्छर 
शर्म ही से न मर जाय !

11 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय आपके सतत प्रोत्साहन के लिए विनम्र साधुवाद !
      प्रणाम !

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  2. मनमोहनी पोस्ट इतने वर्षों विलम्ब से प्राप्त हुई।

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    1. आदरणीय तिलक जी !
      विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ |

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. वाह! आनंद आ गया । बहुत बढ़िया ।

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